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जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक

एन जी जोग

प्रकाशक : प्रकाशन विभाग प्रकाशित वर्ष : 1969
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16196
आईएसबीएन :000000000

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अध्याय 10  गतिशील नीति

दिसम्बर 1904 में तिलक ने दो वर्षों के व्यवधान के बाद कांग्रेस के बम्बई अधिवेशन में भाग लिया। वह ताई महाराज के मुकदमे में फंसे रहने के कारण दो वर्षों तक भाग नहीं ले सके थे। वहां उनका भव्य स्वागत हुआ। उन्होंने अधिवेशन के अध्यक्ष सर हेनरी कॉटन और वेडरबर्न का पूरा समर्थन किया कि कांग्रेस को एक गतिशील नीति अपनानी चाहिए। कांग्रेस के युवक-सदस्य इसके पक्ष में थे, किन्तु फिरोजशाह मेहता किसी भी परिवर्तन के विरुद्ध थे-यहां तक कि उन्होंने ऐम्सटर्डम में आयोजित इण्टरनेशनल सोशलिस्ट कांग्रेस में, जहां भारत में ब्रिटिश शासन की निन्दा करते हुए एक प्रस्ताव पास किया गया था, किए गए दादा भाई नोरोजी के महत्वपूर्ण कार्य का भी विरोध किया। वह कांग्रेस का विधान बनाने के भी विरोधी थे और इस प्रस्ताव के भी कि यह दल वर्षं-भर सक्रिय बना रहे।

1905 में इंग्लैंड की अपनी यात्रा के दौरान गोखले ने बहिष्कार का औचित्य सिद्ध किया था जिससे मेहता को बहुत क्षोभ हुआ और इस अप्रसन्नता के कारण उन्होंने बनारस में (दिसम्बर 1905 में) आयोजित कांग्रेस के अगले अधिवेशन में भाग न लिया। इस अधिवेशन के अध्यक्ष गोखले थे। दूसरी ओर तिलक और गरम दल के अन्य नेता बंगभंग के प्रस्ताव से उत्पन्न क्षोभ-असंतोष को राष्ट्रीय आन्दोलन का रूप देना चाहते थे। उनकी इच्छा थी कि कांग्रेस एक लड़ाकू संगठन बन जाए। इसीलिए तिलक ने कहा था :

''कांग्रेस के दीर्घसूत्री कार्यों पर हमें अब कोई विश्वास नहीं रहा। हमारी दृष्टि से वर्ष में, बस, तीन दिन अधिवेशन करना और यदा-कदा एकाध शिष्टमण्डल इंग्लैण्ड भेज देना बिल्कुल अपर्याप्त है। हमारे इस कथन का अर्थ यह कदापि नहीं कि वैधानिक आन्दोलन में हमारा विश्वास नहीं। हम ब्रिटिश सरकार का तख्ता पलटना नहीं चाहते, किन्तु अपने राजनीतिक अधिकारों के लिए तो हमें संघर्ष करना ही होगा। नरम दलवाले समझते हैं कि यह अनुनय-विनय से ही हो सकता है। लेकिन हमारा विचार है कि ये अधिकार हमें जोरदार दबाव डालने से ही मिल सकते हैं। क्या कांग्रेस यह दबाव डालने को तैयार होगी? यही प्रश्न मुख्य है और यदि सरकार पर ऐसा दबाव डालना है तो कांग्रेसी नेताओं को अपनी संस्था का रूप बदलना होगा और उसे एक ऐसा संगठन बनाना होगा जो सक्रिय रूप में बराबर कार्य करता रहे।''

व्यक्तिगत रूप से गोखले के विचारों में परिवर्तन होने के बावजूद नरम दलवाले उग्रवादियों की बात मानने को तैयार न थे। बनारस में अध्यक्ष पद से भाषण देते हुए गोखले ने बंगाल में हुई उथल-पुथल को राष्ट्रीय प्रगति के इतिहास में एक युगान्तरकारी घटना बताया और स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने तथा विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने की अपील करते हुए बंगाल पर किए गए अत्याचारों के लिए लॉर्ड कर्जन की तीव्र निन्दा की। किन्तु गोखले के ये व्यक्तिगत विचार थे जो नरम दलवालों को अपने पुराते ढंग से सोचने की आदत से ऊपर उठाने के लिए पर्याप्त न थे। अतः उन्होंने बहिष्कार के प्रस्ताव का तो हिचकते हुए समर्थन कर दिया, लेकिन जब उस समय भारत आए प्रिन्स ऑफ वेल्स के स्वागत से संबधित प्रस्ताव आया तो दोनों गुटों का मतमेद चरम सीमा को पहुंच गया, क्योंकि जहां नरम दलवाले अपनी राजभक्ति प्रदर्शित करने के लिए सदा की भांति उनके स्वागत के पक्ष में थे, वहां तिलक और लाजपतराय इसका विरोध कर रहे थे इस आधार पर कि वह देश की तत्कालीन भावना के अनुकूल न था। आखिरकार गोखले के अनुरोध पर दोनों गुटों में समझौता हो गया कि जब प्रस्ताव पेश किया जाए तो तिलक गुट के लोग अनुपस्थित हो जाएंगे और इस प्रकार प्रस्ताव 'सर्वसम्मति से पारित' घोषित न होगा। यद्यपि बनारस-अधिवेशन में कांग्रेस में एकता का दिखावा बना रहा, परन्तु उसमें जो दरारें पड़ गई थीं वे छिप न सकीं। विशेषकर बंगाल, बम्बई और पंजाब के गरम दलवाले अब बेचैन हो उठे थे उनका धैर्य छूट चुका था। वे अब अपने नेताओं से मांग करने लगे कि नरम दल के प्रति वे कड़ा रुख अपनाएं और कांग्रेस में फैली जड़ता और निष्क्रियता को दूर करें। बनारस-अधिवेशन के बाद तिलक के मन में सत्याग्रह का विचार आया। उधर नरम दलवाले बनारस में अधिवेशन में जो कुछ हुआ था, उससे प्रसन्न न थे, क्योंकि वहां गरम दलवालों ने कई सवालो पर उनका कड़ा मुकाबला किया था। साथ ही वे लोग गोखले के अध्यक्षीय भाषण की स्पष्टवादिता से भी बहुत चिन्तित हो उठे थे और यह महसूस करने लगे थे कि गोखले ने अपने नरम विचारों को त्याग दिया है। दरअसल लगता भी ऐसा ही था कि बनारस में गोखले का हृदय गरम दलवालों के साथ और मस्तिष्क नरम दलवालों की ओर था।

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    अनुक्रम

  1. अध्याय 1. आमुख
  2. अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
  3. अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
  4. अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
  5. अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
  6. अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
  7. अध्याय 7. अकाल और प्लेग
  8. अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
  9. अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
  10. अध्याय 10. गतिशील नीति
  11. अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
  12. अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
  13. अध्याय 13. काले पानी की सजा
  14. अध्याय 14. माण्डले में
  15. अध्याय 15. एकता की खोज
  16. अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
  17. अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
  18. अध्याय 18. अन्तिम दिन
  19. अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
  20. अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
  21. परिशिष्ट

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